आपकी कुंडली में मंगल देव - मंगल है या अमंगल ?
- lalkitabsirsa
- Nov 14
- 4 min read

मंगल ग्रह को ज्योतिष में “भूमि पुत्र” कहा गया है और यह अग्नि तत्व से जुड़ा हुआ ग्रह है। इसकी राशि मेष और वृश्चिक होती है। यह ग्रह साहस, पराक्रम, आत्मविश्वास, भूमि-संपत्ति, सेना, तकनीकी क्षेत्र और प्रतिस्पर्धा से जुड़ा होता है। जन्म कुंडली में मंगल की शुभ स्थिति व्यक्ति को पराक्रमी, निर्भीक, निर्णय लेने वाला, और नेतृत्व क्षमता से युक्त बनाती है। ऐसे जातक अपने कर्म से समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं और कठिन परिस्थितियों में भी डटकर खड़े रहते हैं।
लाल किताब ज्योतिष की एक ऐसी शाखा है जो ग्रहों को व्यक्ति के जीवन से जुड़ी व्यवहारिक और कर्म प्रधान परिस्थितियों से जोड़ती है। इस दृष्टि से देखा जाए तो मंगल ग्रह केवल “अमंगल” नहीं बल्कि शक्ति, जोश और कर्म की दिशा देने वाला ग्रह है। लाल किताब में मंगल का स्वभाव “अग्नि” की तरह बताया गया है जो गर्म भी करती है और जलाने की क्षमता भी रखती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति इस ऊर्जा का उपयोग कैसे करता है।
लाल किताब में मंगल को भाई, खून, साहस, गुस्सा, और संपत्ति का कारक माना गया है। इसका सीधा संबंध व्यक्ति के पारिवारिक स्वभाव, व्यवहार, और निर्णय क्षमता से होता है। मंगल यदि जन्मकुंडली में शुभ भावों में स्थित हो — जैसे पहले, तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें भाव में — तो यह व्यक्ति को पराक्रमी, कर्मठ, और न्यायप्रिय बनाता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में कठिन संघर्षों से नहीं घबराते और अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं।
लेकिन यही मंगल जब अशुभ भावों में या राहु, केतु, शनि जैसे ग्रहों के प्रभाव में आता है, तब यह क्रोध, हिंसा, विवाद, दुर्घटना, और मानसिक असंतुलन जैसी स्थितियाँ पैदा कर सकता है। यही कारण है कि इसे “अमंगल” ग्रह भी कहा जाता है। विशेष रूप से जब जन्म कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित होता है, तो इसे मांगलिक दोष कहा जाता है। यह दोष विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन में तनाव का कारण बन सकता है। परंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि मांगलिक दोष हर व्यक्ति के लिए समान प्रभाव नहीं देता। इसके परिणाम अन्य ग्रहों की स्थिति और दशा पर निर्भर करते हैं।
जब यही मंगल गलत घरों में चला जाए — जैसे चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में — तो यह व्यक्ति के व्यवहार को असंतुलित बना देता है। लाल किताब में इसे “भटकी हुई आग” कहा गया है। ऐसा मंगल झगड़े, संपत्ति विवाद, वैवाहिक मतभेद और अनियंत्रित गुस्से का कारण बन सकता है। इसी से मांगलिक दोष जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनका प्रभाव विशेष रूप से वैवाहिक जीवन पर देखा जाता है।
मंगल का अमंगल स्वरूप तभी प्रकट होता है जब उसकी शक्ति असंतुलित हो जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति की ऊर्जा गलत दिशा में प्रवाहित होती है। लेकिन उचित उपायों से इस दोष को संतुलित किया जा सकता है। हनुमान जी की उपासना, मंगलवार को व्रत, लाल चंदन का दान, और मंगल बीज मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः” का जप मंगल के दोषों को शांत करता है। इसके अतिरिक्त, रत्न उपाय के रूप में मूंगा (Coral) धारण करना भी लाभकारी माना गया है — परंतु यह केवल योग्य ज्योतिषी की सलाह से ही करना चाहिए।
लाल किताब का कहना है कि मंगल यदि “घर” में अशुभ हो जाए तो व्यक्ति को “घर का माहौल ठंडा” रखना चाहिए। मिठाई या मीठा बाँट कर खुशियां नहीं मनानी चाहिए मतलब ख़ुशी के मोके पर मीठा बांटे से परहेज रखें , गुस्से से दूर रहना, विवादों से बचना और परिवार में शांति बनाए रखना ही मंगल को शांत करने का सबसे बड़ा उपाय है। साथ ही लाल किताब के अनुसार मंगल को प्रसन्न करने के कुछ विशिष्ट उपाय बताए गए हैं —
• मंगलवार के दिन तांबे के बर्तन में जल रखकर सूर्य को अर्घ्य देना।
• लाल वस्त्र, मसूर की दाल, गुड़ या लाल फूल का दान करना।
• भाई या बहन को उपहार देना, जिससे पारिवारिक मंगल ऊर्जा संतुलित होती है।
• मंदिर में तांबे की वस्तु या मूंगा का दान करना।
• और सबसे महत्त्वपूर्ण — किसी भी परिस्थिति में झूठ, क्रोध या हिंसा से दूर रहना।
बाकी किसी भी तरह के उपाए हो हर एक को अपनी कुंडली के अनुसार ही उपाए करने चाहिए इसके लिए सबसे पहले अपने कुंडली में दिखा ले की आपकी कुंडली का मंगल केसा है वो मंगल है या अमंगल
उपाए केवल योग्य ज्योतिषी की सलाह से ही करना चाहिए।
लाल किताब यह भी कहती है कि यदि मंगल कुण्डली में कमजोर हो तो व्यक्ति की हिम्मत टूटती है, और यदि यह अत्यधिक प्रबल हो तो व्यक्ति जल्दबाज़ी और आक्रोश से खुद ही अपने काम बिगाड़ लेता है। इसलिए मंगल का असली अर्थ संतुलन है — न ज़्यादा आग, न बुझा हुआ दीपक।
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव माना गया है। इन ग्रहों में मंगल को एक अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जावान ग्रह के रूप में देखा जाता है। लेकिन अक्सर लोग मंगल को केवल “अमंगल” या “अशुभ” मान लेते हैं, जो कि ज्योतिषीय दृष्टि से पूरी तरह सही नहीं है। सच यह है कि मंगल जैसा तेजस्वी ग्रह अगर संतुलित स्थिति में हो तो यह व्यक्ति के जीवन में असाधारण ऊर्जा, साहस, सफलता और प्रगति प्रदान करता है। वहीं, यदि यह ग्रह पापभाव में या अशुभ दृष्टि में आ जाए तो यही शक्ति विनाशकारी रूप धारण कर सकती है।
सारांशतः, मंगल न तो पूर्णतः शुभ है, न ही पूर्णतः अशुभ। यह एक शक्ति है — और शक्ति का स्वभाव ही यह है कि उसका उपयोग दिशा तय करती है। यदि व्यक्ति अपनी ऊर्जा को संयम, साहस और परिश्रम में लगाता है, तो मंगल सफलता का कारक बनता है। और यदि यह ऊर्जा क्रोध, अहंकार या आक्रोश में बदल जाए, तो यही मंगल अमंगल का रूप धारण कर लेता है। इसलिए, ज्योतिष में मंगल का सही अर्थ समझना आवश्यक है — यह ग्रह अमंगल नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक है, जिसका सही उपयोग व्यक्ति के भाग्य को बदल सकता है।
अगर आपको भी समझना है की केसा है आपकी कुंडली का मंगल इसके लिए आप हमसे संपर्क कर सकते है





Comments