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जन्म कुंडली में तलाक के योग

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तलाक के योग का विश्लेषण : वैवाहिक विच्छेद के कारक, समय और निवारण हेतु विस्तृत ज्योतिषीय रिपोर्ट

यह रिपोर्ट शास्त्रीय वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य जन्म कुंडली में वैवाहिक विच्छेद (तलाक) के योगों, उनके कारक ग्रहों और भावों की पहचान करना, तलाक के समय का निर्धारण करना और इन नकारात्मक प्रभावों को कम करने हेतु सटीक निवारण उपायों का विस्तृत वर्णन करना है। ज्योतिषीय विश्लेषण में केवल लग्न कुंडली ही नहीं, बल्कि नवमांश जैसे महत्वपूर्ण वर्ग चार्टों का गहन अध्ययन अनिवार्य होता है ताकि वैवाहिक जीवन की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सके ।


वैवाहिक सुख और ज्योतिषीय आधार : वैवाहिक जीवन का महत्व और ज्योतिष में सप्तम भाववैवाहिक जीवन किसी भी जातक के लिए भाग्य का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। ज्योतिष में, जीवनसाथी और सभी प्रकार की साझेदारी का प्रतिनिधित्व सप्तम भाव द्वारा किया जाता है । सप्तम भाव न केवल जीवनसाथी की प्रकृति और चरित्र को दर्शाता है, बल्कि यह साझेदारी की अवधि और संबंध की समग्र गुणवत्ता को भी निर्धारित करता है। सप्तम भाव तुला राशि का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसका स्वामी शुक्र प्रेम और वैवाहिक सुख का प्रतीक है ।


किसी भी कुंडली में वैवाहिक सुख का आकलन केवल सातवें घर को देखकर नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए कुंडली के सभी कारकों—लग्न, चौथा भाव, पांचवा भाव, आठवां भाव, और बारहवां भाव का समग्र विचार करना होता है । सप्तम भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव या सप्तमेश की अशुभ स्थिति वैवाहिक जीवन में असंतोष, कलह, और अंततः विच्छेद की स्थिति उत्पन्न करती है।


विवाह के कारक ग्रह : शुक्र और बृहस्पति, वैदिक ज्योतिष में दो ग्रह मुख्य रूप से विवाह और दांपत्य सुख के कारक माने जाते हैं, और इन पर पड़ने वाला अशुभ प्रभाव तलाक योग की मूलभूत स्थिति बनाता है: शुक्र : शुक्र को प्रेम, रोमांस, शारीरिक सुख, विलासिता और वैवाहिक आनंद का प्राथमिक कारक माना जाता है । स्त्री और पुरुष दोनों की कुंडली में, यदि शुक्र ग्रह नीच, पाप ग्रहों से पीड़ित (जैसे राहु, केतु, शनि से युक्त या दृष्ट), या 6ठे, 8वें, या 12वें भाव में कमजोर स्थिति में हो, तो वैवाहिक सुख में अत्यधिक कमी आती है। शुक्र पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव वैवाहिक सुखों को छिन्न-भिन्न कर देता है ।बृहस्पति : बृहस्पति को सामान्यतः सप्तम भाव का कारक (विशेष रूप से विवाह की लंबी उम्र, धर्म, और विश्वास का कारक) माना जाता है । महिलाओं की कुंडली में, बृहस्पति विशेष रूप से पति का कारक होता है। यदि कारक बृहस्पति की स्थिति शत्रुतापूर्ण हो, यानी वह 6ठे, 8वें या 12वें त्रिक भाव में नकारात्मक रूप से स्थित हो , तो वैवाहिक जीवन की नींव ही कमजोर हो जाती है, जिससे अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।


तलाक योग के मूलभूत सिद्धांत: अशुभ भावों और क्रूर ग्रहों का प्रभाववैवाहिक विच्छेद के विश्लेषण में त्रिक भावों (6, 8, 12) का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये भाव हानि, संघर्ष और कष्ट का प्रतिनिधित्व करते हैं। त्रिक भावों (6, 8, 12) की विनाशकारी भूमिका

छठा भाव (6th House): रोग, ऋण, शत्रु और विवाद: छठा भाव सप्तम भाव से बारहवाँ (व्यय) होता है, जो वैवाहिक सुख की हानि को दर्शाता है। इस भाव का संबंध शत्रुता, रोग, और कानूनी मामलों से होता है। यदि सप्तमेश या विवाह कारक ग्रह छठे भाव में स्थित हों या इससे संबंध बनाएँ , तो पति-पत्नी के बीच खुले तौर पर शत्रुता, लगातार कलह, और कोर्ट केस की स्थिति उत्पन्न होती है । कानूनी दृष्टिकोण से, यह अलगाव, मुकदमेबाजी, और निरंतर संघर्ष को दर्शाता है।

आठवाँ भाव : आयु, मृत्यु और अकस्मात कष्ट: आठवाँ भाव अप्रत्याशित संकट, कष्ट, और आयु का प्रतिनिधित्व करता है। सप्तमेश या कारक ग्रह का आठवें भाव में होना विवाह में अचानक ब्रेक, भावनात्मक आघात, बदनामी, या साथी के कारण गंभीर वित्तीय या शारीरिक कष्ट को दर्शाता है । यह स्थिति अक्सर गंभीर मानसिक तनाव और अचानक तलाक का कारण बनती है।

बारहवाँ भाव : व्यय, हानि और अलगाव: बारहवाँ भाव व्यय, हानि, और शय्या सुख (शारीरिक अंतरंगता) का भाव है। सप्तमेश का 12वें भाव में होना शारीरिक या भावनात्मक अलगाव को दर्शाता है । ऐसा जातक विवाह के बाद अक्सर जन्मस्थान से दूर चला जाता है , या दोनों साथी लंबे समय तक अकेले जीवन व्यतीत करते हैं। शुरुआती समय में यह स्थिति दोनों को एकांत जीवन जीने के लिए ठीक लग सकती है, लेकिन धीरे-धीरे यह कलह और दूरियां पैदा कर देती है, जिससे वैवाहिक सुखों की हानि होती है। इस स्थिति में जातक को अकेलेपन से बचने के लिए परिवार और रिश्तेदारों से मजबूत संबंध बनाए रखने की सलाह दी जाती है ।


क्रूर/पाप ग्रहों का सप्तम भाव पर आधिपत्य और दृष्टि, सप्तम भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव तलाक योग को सुनिश्चित करने वाला सबसे मजबूत कारक है:


मंगल : मंगल अत्यधिक क्रोध, ऊर्जा और आक्रामकता का प्रतीक है। सप्तम भाव में मंगल वैवाहिक जीवन में हिंसा (वायलेंस), अत्यधिक माँग, और जीवनसाथी के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार (शत्रु जैसा बर्ताव) उत्पन्न करता है । मंगल का प्रभाव होने पर वैवाहिक विच्छेद अक्सर विस्फोटक विवादों और कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है।.


शनि : शनि धीमापन, दूरी, और उदासीनता लाता है। सप्तम में शनि भले ही वैवाहिक जीवन को दीर्घायु दे, लेकिन यह संबंध में नीरसता (Dissatisfaction) की भावना पैदा करता है । जातक को लगता है कि जीवनसाथी कर्तव्यनिष्ठ होने के बावजूद विवाह संतोषप्रद नहीं है । शनि के कारण अलगाव धीरे-धीरे भावनात्मक दूरी और उदासीनता के कारण होता है।


राहु और केतु : राहु भ्रम, झूठ, और अचानक बदलाव लाता है, जबकि केतु वैराग्य और अलगाव पैदा करता है । ये दोनों ग्रह सप्तम भाव में या कारक ग्रह पर होने पर विवाह को बाहरी प्रभावों, धोखे, या अचानक, अकथनीय विच्छेद की ओर ले जाते हैं।


मंगल दोष की गंभीर स्थितियाँ : मंगल दोष तब बनता है जब मंगल ग्रह लग्न कुंडली के 1, 4, 7, 8, या 12वें भाव में स्थित होता है । यह दोष जातक के स्वभाव में क्रोध, मांग और आक्रामकता बढ़ाता है। अशुभ स्थिति में यदि दोनों भागीदारों में से केवल एक मांगलिक हो और दूसरा न हो, या यदि दोनों में मंगल दोष की तीव्रता भिन्न हो (जैसे एक उच्च मांगलिक और दूसरा निम्न मांगलिक) , तो मंगल की दशा या अंतर्दशा में दांपत्य सुख में गंभीर तकलीफें आती हैं।


शनि-मंगल युति और सप्तम भाव में उनकी स्थिति : शनि और मंगल (मंद गति और उग्रता का संयोजन) की युति को ज्योतिष में एक अत्यंत विस्फोटक और विघटनकारी योग माना जाता है, विशेष रूप से जब यह सप्तम भाव में हो । परिणाम: यह युति जीवनसाथी को अत्यधिक साहसी, अच्छा दिखने वाला, लेकिन शत्रु जैसा व्यवहार करने वाला बना सकती है । साथी की माँगें बहुत अधिक और गंभीर हो सकती हैं जिन्हें पूरा न कर पाने पर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। यह संयोजन साझेदारी के मामलों में खराब माना जाता है और व्यावसायिक साझेदारी से बचने की सलाह दी जाती है । यह घरेलू जीवन में गंभीर समस्याओं और संबंधों में तनाव पैदा करता है।


वैवाहिक जीवन में तलाक का अंतिम रूप लेने के लिए, केवल संघर्ष (6ठे भाव का कार्य) ही पर्याप्त नहीं होता। संघर्ष का विच्छेद में परिवर्तित होना अक्सर सप्तम भाव के साथ पंचम भाव (प्रेम, रोमांस, संतान) के संबंध पर निर्भर करता है । जब 5वें, 7वें और त्रिक भावों (6/8/12) का संबंध बनता है, तो प्रेम संबंध टूट जाता है, जिससे कानूनी अलगाव होता है।


वर-वधू की कुंडली में D9 और लग्न कुंडली का अंतर-संबंध (Advanced Matchmaking)तलाक योग की पहचान के लिए सबसे उन्नत ज्योतिषीय तकनीक वर और वधू की कुंडली का क्रॉस-एनालिसिस है, जिसे शास्त्रीय मिलान का अंतिम चरण माना जाता है। यह तकनीक यह पता लगाती है कि क्या दोनों भागीदारों के बीच का संबंध संरचनात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है, जिसके परिणामस्वरूप विवाह जल्दी टूट सकता है।


निवारण हेतु ज्योतिषीय उपाय और मंत्र चिकित्सा : ज्योतिषीय उपाय तलाक योगों के हानिकारक प्रभावों को कम करने और संबंधों में शांति लाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इन उपायों का उद्देश्य या तो सुलह कराना होता है, या यदि विच्छेद अपरिहार्य हो, तो उसे शांतिपूर्ण बनाना होता है। इसके अलावा, यदि कुंडली में हिंसात्मक योग हों (शनि-मंगल प्रभाव), तो मंगल और तमस की ऊर्जा को कम करने के लिए लाल और काले रंग के वस्त्रों का उपयोग कम कर देना चाहिए ।


शुक्र शांति और दान: शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए, शुक्रवार के दिन सफेद वस्तुएँ (जैसे चावल, दूध, दही) या सफेद मिठाई का दान करना चाहिए । यह उपाय वैवाहिक जीवन में प्रेम और शांति लाता है । साथ ही, चांदी की कोई वस्तु पास रखने और सफेद कपड़े पहनने से भी शुक्र मजबूत होता है ।


रुद्राक्ष: दांपत्य सुख और शांति के लिए सबसे विशिष्ट उपाय है गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करना। इस रुद्राक्ष को शिव और पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है और यह पति-पत्नी दोनों में आपसी समझ और स्थिरता बढ़ाता है ।


विशिष्ट मंत्र और पाठ चिकित्सा : विशिष्ट पूजा और मंत्र चिकित्सा क्रूर ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को शांत करने में सहायक होती है। शिव-पार्वती उपासना: सोमवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना, शिवलिंग पर जल अर्पित करना और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का 108 बार जाप करना दांपत्य जीवन में चल रहे मतभेदों को दूर करता है । यदि कुंडली में हिंसात्मक योग हैं, तो पति-पत्नी को एक साथ नियमित रूप से रुद्राभिषेक करवाना चाहिए, खासकर सावन मास में ।


प्रेम और मधुरता के लिए: पुरुषों के लिए: यदि पुरुष अपने जीवनसाथी का प्रेम वापस पाना चाहते हैं, तो उन्हें शुक्रवार के दिन भगवान कृष्ण के मंदिर में बाँसुरी अर्पण करनी चाहिए और उनसे अपने प्रेम के लिए प्रार्थना करनी चाहिए । स्त्रियों के लिए: यदि आर्थिक तंगी के कारण कलह हो, तो स्त्री को शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए और श्रीसूक्त का पाठ करना चाहिए ।


नकारात्मक ऊर्जा निवारण: मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी को गुड़-चने का भोग लगाकर हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा, झगड़े, और बहस कम होती है ।


ज्योतिष केवल भविष्यवाणी का उपकरण नहीं है, बल्कि यह निवारण और मार्गदर्शन का माध्यम है। तलाक योग होने पर भी, सही समय पर किए गए उपायों से संबंध की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता है। विशेष रूप से गौरी-शंकर रुद्राक्ष धारण करना, शिव-पार्वती और कृष्ण की उपासना करना, तथा सबसे महत्वपूर्ण, आपसी क्षमा और स्नेह के व्यवहार को अपनाना दांपत्य जीवन को बचाने या संघर्ष को कम करने के सर्वोत्तम मार्ग हैं । विशेषज्ञ सलाह दी जाती है कि ऐसे गंभीर योगों की पुष्टि होने पर, केवल सामान्य उपायों पर निर्भर न रहें, बल्कि किसी अनुभवी ज्योतिषी से व्यक्तिगत कुंडली विश्लेषण करवाकर विशिष्ट दशा-आधारित निवारण प्राप्त करें।



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Guest
Nov 27
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Divya Drishti
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