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पति पत्नी और वोह ?

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पति–पत्नी का रिश्ता विश्वास, प्रेम और सामंजस्य पर आधारित होता है, लेकिन कई बार जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती हैं जहाँ किसी तीसरे का हस्तक्षेप इस संबंध को कमजोर करने लगता है। कई बार लोग अक्सर इसे सिर्फ किस्मत या परिस्थितियों का खेल मानते हैं, लेकिन यह सिर्फ एक घटना नहीं होती, बल्कि कई कारणों का परिणाम होता है। इसमें ज्योतिष यानी कुंडली में दोष, घर का गलत वास्तु भी घर के  माहौल, दिशाओं का संतुलन और ऊर्जा का प्रवाह भी दांपत्य जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। और सबसे जरुरी स्वयं मनुष्य का व्यवहार - ये तीनों मिलकर ऐसी परिस्थितियाँ बना सकते हैं की वैवाहिक जीवन में दरारें आने लगती हैं। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

 

क्या ग्रह जिम्मेदार होते हैं ? (ज्योतिषीय दृष्टिकोण)

 

वैवाहिक जीवन में “तीसरे व्यक्ति” की समस्या हमेशा अचानक पैदा नहीं होती। कई बार इसका मूल कारण व्यक्ति की जन्म कुंडली में छिपा होता है। ज्योतिष शास्त्र स्पष्ट रूप से बताता है कि कुछ विशेष योग, ग्रहों की स्थिति और दोष ऐसी परिस्थितियाँ बना देते हैं जहाँ दांपत्य जीवन में असंतुलन, आकर्षण की विचलित ऊर्जा या वैवाहिक बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। यहाँ हम उन प्रमुख ज्योतिषीय दोषों को विस्तार से समझते हैं जो पति–पत्नी के मध्य किसी तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप का मार्ग बनाते हैं। ज्योतिष में विवाह, दांपत्य सुख, आकर्षण और संबंधों को कई भाव प्रभावित करते हैं—विशेष रूप से सप्तम भाव, द्वादश भाव, पंचम भाव, तथा शुक्र, मंगल, राहु और शनि जैसे ग्रह।

 

सप्तम भाव में दोष (7th House Afflictions) : सप्तम भाव विवाह, दांपत्य सुख, वैवाहिक निष्ठा और जीवनसाथी का कारक है। यदि यह भाव किसी भी तरह से अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो जाए, तो संबंधों में दरार और बाहरी आकर्षण की संभावना बढ़ जाती है।

 

सप्तम भाव में राहु : अचानक आकर्षण, विवाहेतर संबंध, झूठ और भ्रम, आवेगपूर्ण निर्णय, राहु 7th house में हो तो व्यक्ति की इच्छाएँ अस्थिर रहती हैं और तीसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण तेजी से बढ़ सकता है।

 

सप्तम भाव में शनि : दूरी, भावनात्मक ठंडापन, संवाद की कम, शनि यहाँ रिश्ते में बर्फ जैसा ठंडापन पैदा करता है जिसके कारण दंपत्ति में भावनात्मक रिक्तता उत्पन्न होती है।

 

सप्तम भाव में मंगल (कुज दोष यानि के मांगलिक दोष ) : क्रोध, अनबन, शारीरिक असंतुलन, कभी-कभी यह झगड़े इस स्तर तक पहुँच जाते हैं कि बाहरी व्यक्ति भावनात्मक सहारा बन जाता है।

 

शुक्र से जुड़े दोष (Afflicted Venus) : शुक्र प्रेम, आकर्षण, दांपत्य सुख और शारीरिक संबंधों का ग्रह है। यदि शुक्र पीड़ित हो जाये तो वैवाहिक संबंधों में असंतोष, आकर्षण की कमी या बाहरी मोह पैदा हो सकता है। शुक्र प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण और संबंधों का स्वामी है। अगर कुंडली में शुक्र पाप ग्रहों से पीड़ित हो या राहु से ग्रसित हो, तो व्यक्ति के मन में अस्थिरता रहती है, बाहरी आकर्षण की ओर झुकाव बढ़ता है, विवाह में संतोष कम होता है।

 

राहु–शुक्र का अशुभ योग : इसे “विकार उत्पन्न करने वाला” योग माना गया है। अनैतिक रिश्ते, अति आकर्षण, भावनाओं में भ्रम, इस योग वाले लोगों के जीवन में तीसरा व्यक्ति जल्दी आता है।

 

शनि–शुक्र का दमनकारी योग : प्रेम में ठंडापन, रोमांस में कमी, मानसिक दूरी, ऐसे योग संबंधों को कमजोर बनाकर बाहरी व्यक्तियों के हस्तक्षेप का रास्ता खोलते हैं।

 

मंगल–शुक्र का विपरीत योग : मंगल और शुक्र का असंतुलित मिलान दांपत्य जीवन में तकरार, शारीरिक असंतुष्टि या झगड़े को बढ़ाता है, जिससे किसी तीसरे व्यक्ति के लिए जगह बन सकती है।

 

पंचम भाव में दोष (5th House Issues) : पंचम भाव प्रेम संबंधों और मानसिक आकर्षण का स्थान है।

यदि यहाँ राहु, केतु या मंगल का दोष हो तो, अवैध संबंध, गलत निर्णय, विवाह से बाहर आकर्षण जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। खासतौर पर 5th house में राहु तीसरे व्यक्ति की भूमिका को बहुत बढ़ाता है।

 

द्वादश भाव से जुड़े दोष (12th House Afflictions) : 12th house आनंद, एकांत, कल्पना और गुप्त संबंधों का भाव है। यदि यह भाव अत्यधिक सक्रिय हो जाये तो छुपे संबंध, गुप्त आकर्षण या मानसिक विचलन हो सकते हैं। राहु / शुक्र का 12th house में होना, गुप्त प्रेम, छुपे रिश्ते, आकर्षण की अति यहाँ यह योग तीसरे व्यक्ति को अवसर देता है।

 

क्या वास्तु दोष इसका कारण बनता है ?

 

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का ऊर्जा संतुलन भी दांपत्य जीवन पर प्रभाव डालता है। यदि घर में कुछ विशेष प्रकार के दोष हों तो दंपत्ति में बार-बार तनाव और गलतफहमी बढ़ सकती है।

 

शयनकक्ष का गलत दिशा में होना : वास्तु के अनुसार दांपत्य सुख के लिए दक्षिण-पश्चिम (South-West) दिशा सबसे शुभ मानी जाती है। अगर शयनकक्ष उत्तर-पूर्व या दक्षिण-पूर्व दिशा में हो तो, तनाव, क्रोध, असहमति बढ़ने लगती है।

 

बिस्तर का दो भाग में टूटा होना : यदि पति-पत्नी का पलंग बीच में से दो भागों में हो या गद्दे अलग-अलग हों, तो यह मानसिक दूरी का कारण बनता है। वास्तु इसे दांपत्य जीवन में तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप का कारण भी मानता है।

 

बिस्तर के ऊपर बीम – अनजाना तनाव, यदि पलंग के ठीक ऊपर भारी बीम हो, तो यह मानसिक दबाव और तनाव को बढ़ाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अनजाने में चिड़चिड़ा और असंतुलित हो जाता है। जब घर का माहौल भारी और तनावपूर्ण हो, तो पति–पत्नी एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से दूर होने लगते हैं और किसी बाहरी व्यक्ति के प्रति झुकाव बढ़ सकता है।

 

दक्षिण-पश्चिम दिशा का कमजोर होना – रिश्ते की नींव हिलना, दांपत्य जीवन के लिए दक्षिण-पश्चिम (SW) Attraction की दिशा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। यदि यह दिशा - गंदगी से भरी हो, स्टोर हो, कोई टॉयलेट बाथरूम हो, रसोई या आग हो किसी तरह से तो रिश्तों की स्थिरता खत्म होने लगती है। इसी दिशा के दोष के कारण दंपत्ति में विश्वास की कमी और भावनात्मक दूरी बढ़ती है, जिससे तीसरा व्यक्ति आसानी से प्रवेश कर सकता है।

 

वास्तु शास्त्र हमें बताता है कि संबंधों की ऊर्जा घर की ऊर्जा से गहराई से जुड़ी होती है। जब घर में वास्तु दोष मौजूद हों, तो मन, व्यवहार और परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, और पति–पत्नी के बीच अनजाने में दूरी बढ़ती जाती है। यही दूरी तीसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप के लिए रास्ता खोलती है। यदि इन वास्तु दोषों को समय पर सुधारा जाए और घर की ऊर्जा को संतुलित किया जाए, तो दांपत्य जीवन फिर से प्रेम, विश्वास और सामंजस्य से भर सकता है—और किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए जगह नहीं बनती।

 

असल कारण – मानव व्यवहार और भावनाएँ

 

ग्रह और वास्तु अपने स्थान पर हैं, लेकिन किसी रिश्ते में तीसरे व्यक्ति के आने का सबसे बड़ा कारण अक्सर मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारिक कमियाँ होती हैं। 

 

संवाद की कमी : जब पति-पत्नी एक-दूसरे से अपने मन की बात नहीं कह पाते, तो भावनात्मक दूरी पैदा होती है और भावनात्मक खालीपन हमेशा बाहरी सहारे की तलाश करता है। और एक-दूसरे को नज़र अंदाज़ करना, कई बार दंपत्ति अपनी दिनचर्या, मोबाइल, ऑफिस, बच्चों या रिश्तेदारों में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि साथी उपेक्षित महसूस करने लगता है।

 

सम्मान का अभाव : जहाँ प्यार और सम्मान न हो, वहाँ नाराज़गी और शिकायतें बढ़ती जाती हैं और रिश्ते में दरार बन जाती है। अपनापन और रोमांस की कमी भी एक बड़ा कारण बन जाता है समय के साथ रिश्ते में नयापन बनाए रखना भी ज़रूरी है। जब ऐसा नहीं होता, तो मन नए आकर्षणों की ओर जा सकता है।

 

समाधान क्या है ?

• पति-पत्नी खुले मन से दैनिक संवाद करें।

• समय निकालकर साथ बैठें, यात्रा करें, भावनाएँ साझा करें।

• घर में वास्तु संतुलन बनाए रखें।

• आवश्यकता हो तो ज्योतिषीय और वास्तु परामर्श लेकर ग्रहों को शांत करें।

• सबसे महत्वपूर्ण—रिश्ते में प्रेम, सम्मान और विश्वास का पुनर्निर्माण करें।

 

पति-पत्नी के बीच में “वोह” का आना किसी एक कारण का परिणाम नहीं होता। ग्रह, वास्तु और व्यवहार तीनों मिलकर संबंधों को प्रभावित करते हैं। लेकिन सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि कोई रिश्ता तब तक सुरक्षित है जब तक उसमें प्रेम और भरोसा है। अगर दोनों साथी ईमानदारी से कोशिश करें तो कोई तीसरा कभी भी उनके बीच जगह नहीं बना सकता। और अगर आपको भी जानना है के आपको कौन ज़िम्मेदार है आपकी ज़िन्दगी में आने वाली दुःख परेशानियों का ये बताने में हम आपकी मदद कर सकते हैं इसके लिए आप हमें 8053766775 पर व्हाट्सप करें और मेसेज में लिखे अपनी जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान फिर हम आपको बताएँगे   

 

ये सेवा निशुल्क है सबको जवाब देने में थोड़ा समय लग सकता है कृपया इंतज़ार करें



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